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चांद पर ढलने लगा सूरज : रात होने पर -238°C ठंड झेल पाएंगे विक्रम-प्रज्ञान या हमेशा के लिए सो जाएंगे

चंद्रयान-3 को चांद पर उतरे 11 दिन बीत चुके हैं। अब चांद पर सूरज ढलना शुरू हो गया है और 3 दिन बाद रात हो जाएगी। ISRO ने शनिवार को बताया कि प्रज्ञान रोवर ने अपना काम पूरा कर लिया है। इसे अब सुरक्षित रूप से पार्क कर स्लीप मोड में सेट किया गया है। चांद पर धरती के 14 दिन के बराबर एक दिन होता है। इतनी ही बड़ी रात होती है। रात के दौरान चांद के साउथ पोल पर तापमान माइनस 238 डिग्री सेल्सियस तक गिर जाता है।

सूर्य की रोशनी में काम करते हैं प्रज्ञान और विक्रम लैंडर

  • चंद्रयान-3 के विक्रम और प्रज्ञान लैंडर में सोलर पैनल लगे हैं। इन दोनों लैंडर को इस तरह से डिजाइन किया गया है कि ये सिर्फ लूनर डे यानी दिन के समय ही काम कर सकेंगे।
  • लूनर डे के दौरान चंद्रमा के दक्षिणी हिस्से पर लगातार सूर्य की रोशनी आती है, जो इस पूरे मिशन को अंजाम तक पहुंचाने के लिए बेहद जरूरी है। इसी वजह से वैज्ञानिकों ने 23 अगस्त को चंद्रमा पर लूनर डे शुरू होते ही वहां चंद्रयान-3 की सॉफ्ट लैंडिंग कराई।
  • ISRO के मुताबिक प्रज्ञान रोवर ने अपना काम पूरा कर लिया है। इसे अब सुरक्षित रूप से पार्क कर स्लीप मोड में सेट किया गया है। इसमें लगे दोनों पेलोड APXS और LIBS अब बंद हैं। इन पेलोड से डेटा लैंडर के जरिए पृथ्वी तक पहुंचा दिया गया है।

चांद की ठंडी रातें विक्रम और प्रज्ञान के लिए बेहद मुश्किल

  • चंद्रमा पर लूनर डे यानी 14 दिन खत्म होते ही यहां सूरज ढलने लगा है। फिर चंद्रमा के इस हिस्से में पूरी तरह से अंधेरा छा जाएगा। इस दौरान चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव की सतह का तापमान तेजी से घटकर -238 डिग्री सेल्सियस के आसपास पहुंच जाएगा।
  • यहां ज्यादा ठंड और सूरज की रोशनी नहीं होने की वजह से विक्रम और प्रज्ञान काम करना बंद कर देंगे। ISRO के मुताबिक सूरज की रोशनी पर निर्भर रहने वाले विक्रम और प्रज्ञान अंधेरे में पूरी तरह से निष्क्रिय हो सकते हैं।
  • चंद्रमा पर रात यानी लूनर नाइट के वक्त विक्रम और प्रज्ञान के लैंडर के सुरक्षित रहकर काम करने की संभावना बेहद कम है। लैंडर में लगी बैटरियों में कुछ समय तक अंधेरे से निपटने की क्षमता है। हालांकि ये क्षमता इतनी ज्यादा नहीं है कि -238 डिग्री सेल्सियस के करीब तापमान में लैंडर को फंक्शनल रख सके।
  • चंद्रयान -3 मिशन के वैज्ञानिक एम श्रीकांत के मुताबिक विक्रम और प्रज्ञान के अब तक के प्रदर्शन को देखते हुए चांद पर रात खत्म होने के बाद भी लैंडर और रोवर के दोबारा से काम करने की उम्मीद बढ़ गई है।

लूनर नाइट खत्म होने के बाद क्या दोबारा लैंडर काम करेंगे?

  • ISRO के वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर लूनर नाइट के दौरान ठंड में लैंडर के इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम खराब नहीं होते हैं तो दिन होते ही लैंडर को दोबारा एक्टिव करने की कोशिश होगी।
  • बड़े सौर पैनलों वाले लैंडर का लूनर नाइट के समय सुरक्षित रहने की संभावना ज्यादा है। इस लैंडर को लूनर नाइट से पहले अगर चंद्रमा के उस हिस्से में भेजा जाए, जहां थोड़ी बहुत रोशनी आती है। फिर लैंडर के काम करते रहने की संभावना बढ़ जाती है।
  • रोवर की बैटरी पूरी तरह चार्ज है। रोवर को ऐसी दिशा में रखा गया है कि जब चांद पर अगला सूर्योदय होगा तो सूर्य का प्रकाश सौर पैनलों पर पड़े। इसके रिसीवर को भी चालू रखा गया है। उम्मीद की जा रही है कि 22 सितंबर को ये फिर से काम करना शुरू करेगा।

क्या चंद्रयान-3 के लैंडर-रोवर धरती पर वापस आएंगे?

  • नहीं, ISRO के वैज्ञानिकों का कहना है कि विक्रम और प्रज्ञान धरती पर वापस नहीं आएंगे। चंद्रयान-3 के लैंडर और रोवर चंद्रमा की सतह पर ही रहेंगे। अगर ये दोनों काम करना बंद कर दें तो दोबारा से इनके रिवाइवल को लेकर ISRO के पास कोई प्लान B नहीं है।
  • हालांकि विक्रम और प्रज्ञान के काम करना बंद करने के बाद भी उन्हें अंतरिक्ष का कबाड़ नहीं माना जाएगा। ऐसा इसलिए क्योंकि दोनों काम करना बंद करके भी चंद्रमा की सतह पर ही रहेंगे। अंतरिक्ष एवं रक्षा विशेषज्ञ गिरीश लिंगन्ना का कहना है कि प्रज्ञान और विक्रम काम करना बंद करके पृथ्वी की कक्षा में आ जाते, तो ही इन्हें अंतरिक्ष का मलबा माना जाता।
  • पहला रूसी लूनर रोवर का नाम लूनोखोद 1 था, जिसे 1970 में लॉन्च किया गया था। यह 6 पहियों वाला रोवर था, जिसने 10 महीने में चंद्रमा की सतह का पता लगाया था। लूनोखोद 1 रोवर लगभग 2.3 मीटर लंबा और 1.5 मीटर लंबा था। इसमें आठ स्वतंत्र रूप से संचालित पहिए, कैमरे, स्पेक्ट्रोमीटर और एक भूकंपमापी यंत्र लगा था। इस रोवर में एक लेजर रिफ्लेक्टर भी लगा था, जिसका यूज पृथ्वी पर वैज्ञानिकों द्वारा पृथ्वी और चंद्रमा के बीच की दूरी को मापने के लिए किया गया था।

    रूस के इस रोवर ने चंद्रमा पर लगभग 3 महीने तक काम किया था। इसके बाद वह फंक्शनल नहीं रहा। इस रोवर का अवशेष अब भी चंद्रमा की सतह पर ही है। इस रोवर ने कुल 10.54 किलोमीटर की दूरी तय कर चंद्रमा की सतह से 20,000 से ज्यादा तस्वीरें भेजी थीं।

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