9 सितंबर को दिल्ली के भारत मंडपम में PM नरेंद्र मोदी ने अफ्रीकन यूनियन के G20 में शामिल होने की घोषणा की। इसके साथ ही 26 साल पहले 1997 में बना G20 अब G21 बन गया है। अफ्रीकन यूनियन वो संगठन है जिसे लीबिया के तानाशाह मुअम्मर गद्दाफी ने 1963 में अफ्रीकी देशों को आजादी दिलाने के लिए बनाया था।
गद्दाफी ने इस संगठन के जरिए अफ्रीकी देशों को एकजुट कर पश्चिमी देशों को चुनौती दी थी। अब भारत ने G20 में शामिल उन्हीं पश्चिमी देशों को एकजुट कर दुनिया के सबसे ताकतवर आर्थिक संगठन में अफ्रीकन यूनियन को शामिल कराया है।
इस स्टोरी में जानेंगे कि अफ्रीकन यूनियन है क्या, इसे G20 में शामिल कराकर भारत क्या हासिल करना चाहता है –
25 मई 1963 को इथियोपिया के अदीस अबाबा शहर में 32 अफ्रीकी देश मिलते हैं। ये वो दौर था जब अफ्रीका के ज्यादातर देशों पर ब्रिटेन और फ्रांस जैसे पश्चिमी देशों का कब्जा था। इन सभी नेताओं का एक मंच पर आकर मिलने का मकसद अफ्रीका को पश्चिमी देशों के चंगुल निकलवाना था। बैठक के दौरान 32 अफ्रीकी देशों ने एक संगठन बनाया, जिसे अफ्रीकी एकता संगठन OAU के नाम से जाना गया।
इस बैठक के दौरान एक इमोशनल स्पीच देते हुए इथियोपिया के राजा हैले सेलासी प्रथम ने कहा था- अफ्रीका में रहने वाले लोग वैसे ही हैं जैसे दुनिया के दूसरे देशों के लोग हैं। ये न तो किसी से कम हैं न किसी से ज्यादा। जब तक अफ्रीकी देशों को आजादी नहीं मिल जाती, हमारा मकसद पूरा नहीं होगा।
1981 आते-आते अफ्रीका और दुनिया के दूसरे हिस्से में इस संगठन की आलोचना होने लगी। आलोचकों का कहना था कि ये संगठन सिर्फ तानाशाहों का क्लब बन कर रह गया है। इसने न तो अफ्रीकी नागरिकों के अधिकारों की रक्षा की और न ही अपने लक्ष्य हासिल किए।
9 साल बाद अफ्रीकन यूनियन को फिर जिंदा करने का जिम्मा लीबिया का तानाशाह मुअम्मर अल गद्दाफी अपने कंधों पर लेता है। वही गद्दाफी जिसने यूएन के मंच से दुनिया में पश्चिमी देशों के दबदबे के खिलाफ खुलकर अपनी राय रखी। अपने इस अंदाज की वजह से सिर्फ लीबिया ही नहीं बल्कि पूरे अफ्रीका में वो लोकप्रिय बन गए थे।
जुलाई 1999 में अलजीरिया में हुए OAU समिट के दौरान गद्दाफी घोषणा करते हैं कि अफ्रीका के एकजुट होने का वक्त आ गया है। 1963 में एडॉप्ट किए गए चार्टर को बदलना चाहिए। गद्दाफी ने इसके लिए अफ्रीकी देशों के नेताओं को लीबिया के सिर्ते शहर में बुलाया। 9 सितंबर को सिर्ते शहर में गद्दाफी ने अपना विजन उनके सामने रखा। यानी USA की तर्ज पर सभी अफ्रीकी देशों को मिलाकर यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ अफ्रीका बनाने की सलाह। 2002 में साउथ अफ्रीका में OAU को बदलकर अफ्रीकन यूनियन कर दिया गया।
गद्दाफी ने लीबिया के तेल भंडारों से कमाया पैसा इस संगठन में लगाया। गद्दाफी की इस पहल पर अफ्रीकी लीडर्स ने उन्हें अफ्रीका का बेटा होने की उपाधि दी। अफ्रीकी देशों ने साथ मिलकर काम करने का फैसला किया। तब से ये संगठन अफ्रीकी देशों के बीच एक कड़ी के तौर पर काम करता है। अब इसमें 55 अफ्रीकी देश शामिल हैं।