अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन कल यानी 8 सितंबर को 3 दिन के दौरे पर भारत आ रहे हैं। ये राष्ट्रपति बनने के बाद उनका पहला भारत दौरा होगा। वो शाम को एयरफोर्स-1 से दिल्ली पहुंचेंगे। प्रधानमंत्री मोदी भी उन्हें रिसीव कर सकते हैं। 8 सितंबर को बाइडेन PM मोदी के साथ द्विपक्षीय बैठक भी करेंगे। पहले व्हाइट हाउस ने बताया था कि वो 7 सितंबर से दिल्ली के दौरे पर रहेंगे।
अब व्हाइट हाउस ने प्रेस रिलीज जारी कर बताया है कि वो अमेरिका से जर्मनी के रैम्स्टीन शहर जाएंगे। वहां से भारत आएंगे। इसके बाद 9-10 सितंबर को वो G-20 शिखर सम्मेलन में शामिल होंगे। बाइडेन को दिल्ली के ITC मौर्या होटल में ठहराया जाएगा। बाइडेन की सुरक्षा के लिए अमेरिका की सीक्रेट सर्विस की टीम 3 दिन पहले ही भारत पहुंच चुकी है।
बाइडेन सीक्रेट सर्विस के 300 कमांडो के सुरक्षा घेरे में रहेंगे। दिल्ली की सड़कों पर निकलने वाला सबसे बड़ा काफिला भी उनका ही होगा, जिसमें 55-60 गाड़ियां शामिल होंगी। वहीं मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, बाइडेन के लिए दुनिया की सबसे सेफ कार ‘द बीस्ट’ को भी भारत लाया जा रहा है। इसी कार में बैठकर वो G-20 समिट के लिए जाएंगे।
एक समय पाकिस्तान का सपोर्टर रहा अमेरिका पिछले कुछ समय से लगातार भारत को अपना दोस्त बता रहा है। वहीं भारत भी अमेरिका के साथ स्ट्रैटेजिक पार्टनरशिप बढ़ाने पर फोकस कर रहा है।
1962 में चीन के खिलाफ जंग में अमेरिका ने दिया भारत का साथ
बात 1962 में हुई भारत-चीन जंग की है। चीन ने 20 अक्टूबर को लद्दाख और मैकमोहन लाइन पर एक साथ हमला कर दिया था। अचानक हुआ ये हमला भारत के लिए घातक साबित हुआ और हमारी सेना की तरफ से पूरी ताकत लगाने के बावजूद चीन की आर्मी बढ़त हासिल कर रही थी।
इस बीच 28 अक्टूबर को अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ, केनेडी ने PM नेहरू को एक खत लिखा। लेखक और US सिक्योरिटी मामलों के एक्सपर्ट ब्रूस राइडल ने अपनी किताब JFK’s फॉरगॉटेन क्राइसिस में बताया कि केनेडी का खत मिलने के अगले ही दिन नेहरू ने अमेरिकी राजदूत को एक मीटिंग के लिए बुलाया। यहां तत्कालीन विदेश मंत्री कृष्णा मेनन ने उन्हें मदद के लिए जरूरी सप्लाई और हथियारों की जानकारी दी।
US ऐंबैस्डर ने दिल्ली में मौजूद ब्रिटिश और कनाडाई राजदूत को इसकी जानकारी दी। इसके बाद अमेरिका और ब्रिटेन ने यूरोप में अपने मिलिट्री बेस से भारत की मदद के लिए US एयरफोर्स के बोइंग 707 एयरक्राफ्ट भेजा। 2 नवंबर तक हर रोज 8 फ्लाइट्स में 20 हजार किलो के हथियार और गोले-बारूद कोलकाता पहुंचाने लगे। इसमें रॉयल एयरफोर्स ने भी भारत का साथ दिया।
इसके बाद भी जब चीन ने भारत को घेर लिया और वो लेह तक पहुंचने वाले थे, तब PM नेहरू ने JFK के नाम 2 चिट्ठी लिखीं। इसमें उन्होंने अमेरिका को जंग के हालात बताते हुए फाइटर जेट्स, इन्हें ऑपरेट करने के लिए अमेरिकी पायलट और B-47 बॉम्बर भी मांगे। मीडिया हाउस पॉलिटिको के मुताबिक नेहरू ने ब्रिटेन के PM को भी ऐसा ही खत लिखा।
अमेरिका ने भारत की मांग पूरी करते हुए जंग में शामिल होने से इनकार कर दिया, लेकिन फिर भी उसने मदद का भरोसा दिलाया और भारत के लिए हथियारों की सप्लाई बढ़ा दी। इसके अलावा US ने अपनी सातवीं फ्लीट के जहाजों को बंगाल की खाड़ी में भेजने का आदेश दिया। इसका मकसद चीन को ये बताना था कि अमेरिका हर हाल में जंग में भारत के साथ है। इसके बाद 20 नवंबर को चीन ने सीजफायर की घोषणा कर दी।
इंडो-पैसेफिक के लिए भारत-अमेरिका साझेदारी जरूरी
चीन के मुद्दे को लेकर भारत और अमेरिका की चिंता लगभग एक जैसी है। एक तरफ जहां LAC और हिंद महासागर में चीन की दखलंदाजी का भारत विरोध करता है। वहीं, अमेरिका भी ताइवान और साउथ चाइना सी में चीन की घुसपैठ की कोशिशों का विरोध करता है। ऐसे में चीन से निपटने के लिए दोनों देशों को एक-दूसरे के साथ की जरूरत है।
इसके अलावा दोनों ही देश इंडो-पैसेफिक क्षेत्र में साझेदारी बढ़ाकर चीन के दबदबे को कम करना चाहते हैं। हाल के वर्षों में चीन ने न केवल भारत पर बढ़त बनाने के लिए हिंद महासागर में अपनी गतिविधियां बढ़ाई हैं, बल्कि पूरे साउथ चाइना सी पर अपना दावा भी ठोका है। उसके इन कदमों को सुपर पावर बनने की कोशिशों के तौर पर देखा जाता है। यही वजह है कि अमेरिका भारत के साथ मिलकर QUAD के विस्तार पर काम कर रहा है, ताकि चीन के इन मंसूबों पर पानी फेरा जा सके।
QUAD का मकसद हिंद-प्रशांत क्षेत्र में महत्वपूर्ण समुद्री मार्गों को किसी भी सैन्य या राजनीतिक प्रभाव से मुक्त रखना है। इसे चीनी दबदबे को कम करने के लिए बनाए गए एक रणनीतिक समूह के रूप में देखा जाता है।