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यूं ही नहीं हताश हो रहे हैं कांग्रेस कार्यकर्ता

चुनाव में कोई भी राजनीतिक दल अपने समर्पित कार्यकर्ताओं के बल पर ही चुनाव लड़ता है, लेकिन जब कार्यकर्ता ही हताश होने लगे, तो आशंका के बादल घिरते दिखाई पड़ता है। मध्य प्रदेश में कांग्रेस के कार्यकर्ताओं में हाल की कई घटनाओं को लेकर ऐसे ही हताशा देखने को मिल रही है। चाहे मालवा हो या निमाड़ या हो विंध्य का इलाका। हर तरफ आपसी गुटबाजी और सरेआम नेताओं के बीच हाथापाई की घटनाओं से पार्टी कार्यकर्ता असमंजस में दिखाई पड़ रहे हैं। हद तो तब हो गई, जब इंदौर में एक ओर भाजपा के नेताओं की सभाओं में खचाखच भीड़ थी। दूसरी ओर कांग्रेस के सम्मेलन में सैकड़ों खाली कुर्सियां मानो मंच को मुंह चिढ़ा रही हों।
कमलनाथ की रैली में खाली कुर्सियां देखकर कांग्रेस के ही नेता कह रहे हैं कि कहीं अति आत्मविश्वास भारी न पड़ जाए। एक तरफ कठिन चुनौती मानकर भाजपा का पूरा सत्ता – संगठन कार्यकर्ताओं को लामबंद करने में जुटा है। भाजपा की ओर से जब केंद्रीय गृह मंत्री श्री अमित शाह की सभा इंदौर में हुई तो आलाकमान की सक्रियता से स्थानीय स्तर पर भाजपा का उत्साह बढ़ा है। दूसरी ओर, कांग्रेस भले ही राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री श्री कमलनाथ के बूते पूरा जोर लगा रही है, लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री व सांसद श्री दिग्विजय सिंह की अलग सक्रियता और गुटबाजी से कांग्रेस कार्यकर्ता ही संशय में दिखाई पड़ रहे हैं।
अब कमलनाथ को जानता अपना नाथ मानती है या नही ये तो बाद में पता चलेगा। लेकिन उनकी रैली का फीकापन देखकर कांग्रेसियों का डर तो स्वाभाविक है। कांग्रेस के एक नेता ने कहा कि  हम बस ये सोचकर बैठ गए हैं कि शिवराज का राज खुद ब खुद चला जायेगा। लेकिन मोदी – शाह की जोड़ी हारी हुई बाजी भी पलट देती है। यहां तो अभी शिवराज का ही राज है। इसलिए अगर कांग्रेस चौकन्ना नही हुई तो मध्यप्रदेश में कमलनाथ का हाथ सत्ता से फिर दूर न रह जाये। बाकी एक पेंच यह भी है कि ,कांग्रेस के कई बड़े नेता अभी से कह रहे हैं भाई अबकी बार कांग्रेस नही कमलनाथ की लड़ाई है। यानि  कांग्रेस में भितरघात भी कम नहीं। फिलहाल भाजपा चुनौतियों के बीच अपना घर संभालकर सत्ता की राह संवारने में पूरी ताकत से जुट गई है। वहीं, कांग्रेस भाजपा की विफलता में अपनी सफलता की आस लगाए हुए है।
इस बीच खबर यह भी आ रही है कि मध्यप्रदेश में होने वाले विधानसभा के चुनाव में दावेदारों की संख्या को देखते हुए सर्वे कराने का निर्णय लिया है। पार्टी के इन्हीं फैसलों ने दावेदारों के माथे पर चिंता की लकीरें गहरी कर दी हैं। दावेदार राज्य की राजधानी से लेकर दिल्ली तक पार्टी मुख्यालय और राजनेताओं के चक्कर लगाने में लगे हैं। पार्टी के नेता इन दावेदारों को लगातार यही कह रहे हैं कि सर्वे में जिसका नाम आएगा, उसे ही पार्टी उम्मीदवार बनाएगी। जिस भी व्यक्ति का नाम सर्वे में आएगा उसे ही उम्मीदवार बनाया जाएगा। परिवारवाद और राजनेताओं के संरक्षण मात्र पर टिकट हासिल करना गारंटी नहीं होगा, यह भी बार-बार दोहराया जा रहा है।बीते तीन साल से चुनाव की तैयारी में लगे एक दावेदार का कहना है कि बीते दो चुनावों से पार्टी के सामने अपनी दावेदारी पेश कर रहे हैं मगर उन्हें पार्टी ने उम्मीदवार नहीं बनाया। वहीं, दूसरी ओर बडे़ राजनेता के संरक्षण प्राप्त व्यक्ति को उम्मीदवार बनाया और उसे दोनों बार हार का सामना करना पड़ा। अब पार्टी कह रही है कि सर्वे के आधार पर टिकट देंगे। ऐसे में आशंकाएं जोर पकड़ रही हैं क्या वाकई में सर्वे से टिकट मिलेगा या नेता का संरक्षण हासिल व्यक्ति को।

डॉ अजय बंसल

नई दिल्ली

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