भारतीय राजनीति की नाटकीय परंपरा में विपक्ष की भूमिका अद्भुत एवं महत्वपूर्ण होते हुए लगातार निस्तेज हुई है, इससे लोकतंत्र भी कमजोर हुआ है। लोकतंत्र में विपक्ष की भूमिका सर्वाधिक महत्वपूर्ण मानी गयी है, वह राष्ट्रीय मंच पर छाया रहता है। लेकिन हमारा विपक्ष जरूरी जिम्मेदारियों से मुंह फेरते हुए मात्र राजसत्ता का भोग करने के लिये लालायित रहता है। जबकि विपक्ष को तीव्र आलोचना, आन्दोलन एवं विरोध की बजाय देश-निर्माण में भागीदारी निभानी चाहिए। विपक्ष निष्काम सेवा में विश्वास रखने वाला होना चाहिए। जैसा कि भगवद्गीता में कहा गया है- हमारा अधिकार सिर्फ अपने कर्म पर है, उसके परिणाम पर हमारा कोई अधिकार नहीं है। विपक्ष दल कहां कर्म कर रहा है? राजनीतिक दलों ने 2024 के आम चुनावों के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को हटाने की ठान ली है। विपक्ष में होड़ मची है। क्योंकि एक दशक से विपक्षी नेताओं ने सत्ता-सुख नहीं भोगा है।
एक ओर 38 और दूसरी ओर 26। ये संख्या बल है दो राजनीतिक गठंबधन का। लोकसभा चुनाव 2024 के लिए सियासी बैठकों का दौर अब चरम पर है। केंद्र सरकार की नीतियों को लेकर कांग्रेस की अगुवाई में 26 दलों ने मिलकर नया गठबंधन बनाया है, जिसका नाम रखा है – ‘इंडिया’( इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इन्क्लूसिव एलायंस) है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने साझा प्रेस कांफ्रेंस में इसका ऐलान किया। हालांकि प्रेस कांफ्रेंस से पहले ही राष्ट्रीय जनता दल और तृणमूल कांग्रेस ने गठबंधन के नाम की घोषणा कर दी थी। इसकी दो दिनों 17 और 18 जुलाई को बेंगुलुरु में बैठक चली। दूसरी ओर, 18 जुलाई को राजधानी के अशोक होटल में प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में एनडीए यानी राष्ट्ीय जनतांत्रिक गठबंधन की बैठक हुई, जिसमें बीते नौ सालों के कामकाज को लेकर स्वयं प्रधानमंत्री ने ब्यौरा दिया और साथ मिलकर देश को आगे ले जाने का आह्वान किया।
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने केंद्र की भाजपा सरकार पर हमला करते हुए कहा- भाजपा ने लोकतंत्र की सभी एजेंसियों ईडी, सीबीआई आदि को नष्ट कर दिया है। उन्होंने माना कि गठबंधन की सहयोगियों के बीच कुछ मसलों पर एक राय नहीं है लेकिन साथ ही उन्होंने उम्मीद जताई कि जल्दी ही इसे दूर कर लिया जाएगा। उन्होंने कहा- हमारे बीच राजनीतिक भेद हैं, लेकिन हम देश को बचाने के लिए साथ आए हैं।एनडीए की बैठक पर तंज करते हुए खड़गे ने कहा- इससे पहले हम पटना में मिले थे, जहां 16 पार्टियां मौजूद थीं। आज की बैठक में 26 पार्टियों ने हिस्सा लिया। यह देखकर एनडीए 36 पार्टियों के साथ बैठक कर रहे हैं। मुझे नहीं पता वो कौन सी पार्टियां हैं। वे रजिस्टर्ड भी हैं या नहीं? मीडिया पर भेदभाव का आरोप लगाते हुए उन्होंने कहा- सारी मीडिया पर मोदी का कब्जा। ऐसा पहले कभी नहीं देखा था कि मीडिया हमारे खिलाफ इतनी शत्रुतापूर्ण है।
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने विपक्षी गठबंधन का नाम ‘इंडिया’ रखे जाने के बाद कहा कि यह नाम इसलिए रखा गया है क्योंकि भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए की लड़ाई इंडिया से है। बेंगलुरू में हुई विपक्षी पार्टियों की बैठक के बाद साझा प्रेस कांफ्रेंस में राहुल ने कहा- आज देश की आवाज को दबाया जा रहा है। ‘इंडिया’ नाम इसलिए चुना गया, क्योंकि लड़ाई एनडीए और इंडिया के बीच है, मोदी और इंडिया के बीच में है। आपको पता है कि जब कोई इंडिया के खिलाफ खड़ा होता है तो जीत किसकी होगी।
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने साझा प्रेस कांफ्रेंस में कहा- देश में दलित, हिंदू, मुस्लिम हर किसी की जिंदगी खतरे में है। दिल्ली, बंगाल, मणिपुर हो, सरकार बेचना, सरकार खरीदना यही काम सरकार का है। हमारे गठबंधन का नाम ‘इंडिया’ है, बीजेपी क्या तुम इंडिया को चैलेंज करोगे? कांग्रेस एवं आम आदमी पार्टी एक दूसरे के विरोध के बावजूद अब यदि एक मंच पर आने को सहमत हुए हैं तो यह स्पष्टतः सत्ता एवं स्वार्थ की राजनीति है। प्रश्न यह भी है कि क्या अब आम आदमी पार्टी आगामी चुनाव वाले राज्यों में कांग्रेस पर अपने तीखे राजनीतिक हमले करने बंद कर देगी?
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा- नौ साल में केंद्र सरकार ने हर सेक्टर को बरबाद कर दिया है। इन्होंने एयरपोर्ट, जहाज, आसमान, धरती, पाताल सब बेच दिया। इनकी सरकार से किसान, व्यापारी हर वर्ग दुखी है। केजरीवाल ने आगे कहा- देश में जिस तरह नफरत फैलाई जा रही है, उससे देश को बचाने के लिए हम इकट्ठा हुए हैं। महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने हिंदी फिल्म के डायलॉग के अंदाज में कहा- हम देश को बताने आए हैं कि मैं हूं ना। देश हमारा परिवार है। हम अपने परिवार को बचाने एकत्र हुए हैं।
एनडीए के 25 साल पूरे होने के मौके पर मंगलवार को हुई बैठक में अगले लोकसभा चुनाव को लेकर रणनीति पर चर्चा हुई। इससे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के एनडीए की बैठक के लिए पहुंचने पर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के साथ शिव सेना नेता एकनाथ शिंदे और अन्ना डीएमके के ई पलानीस्वामी सहित तमाम विपक्षी नेताओं ने बड़ी सी माला पहना कर उनका स्वागत किया। इसके बाद प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में एनडीए के सभी घटक दलों की बैठक शुरू हुई। बैठक से पहले प्रधानमंत्री मोदी ने ट्विट किया- हमारा गठबंधन एक समय-परीक्षित गठबंधन है जो राष्ट्रीय प्रगति को आगे बढ़ाना और क्षेत्रीय आकांक्षाओं को पूरा करना चाहता है। भाजपा अगले लोकसभा चुनाव को लेकर योजनाबद्ध तरीके से आगे बढ़ रही है। उसने हर राज्य में अपने पुराने सहयोगियों से संपर्क किया है और उनको एनडीए में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया है। इसके अलावा वह नई पार्टियों को भी गठबंधन में शामिल करके सामाजिक और क्षेत्रीय संतुलन बनाने का प्रयास कर रही है।प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने एनडीए के घटक दलों को लेकर कहा कि ये पार्टियां देश की क्षेत्रीय आकांक्षाओं का इंद्रधनुष हैं। उन्होंने बैठक में शामिल सभी पार्टियों का स्वागत किया और कह कि एनडीए में कोई छोटा या बड़ा दल नहीं है। उन्होंने कहा कि राज्यों के विकास से राष्ट्र का विकास के मंत्र को एनडीएने सशक्त किया है। पुराने साथियों का मैं अभिनंदन करता हूं। नए साथियों का भविष्य के लिए स्वागत करता हूं। एनडीए के 25 सालों की यात्रा के साथ सुखद सहयोग जुड़ा है। भारतीय आज नए संकल्पों की ऊर्जा से भरे हैं। उन्होंने एनडीए का मतलब बताते हुए कहा- एन से न्यू इंडिया के लिए, डी से डेवलप नेशन के लिए और ए से इंसपिरेशन फॉर पीपल के लिए। मोदी ने कहा- दलित, आदिवासी, पीड़ित सभी का विश्वास एनडीए पर है। हमारा संकल्प पॉजिटिव है, एजेंडा पॉजिटिव है, रास्ता भी पॉजिटिव है। देश में राजनीतिक गठबंधन का पुराना इतिहास है, लेकिन नकारात्मक विचार से बने गठबंधन सफल नहीं हुए।
राजनीतिक गलियारों में टहलने पर चर्चा ए आम सुनाई पड़ती है कि चुनावी राजनीति में भाजपा का सबसे बड़े एडवांटेज नरेंद्र मोदी हैं। इसके अलावा हर मामले में विपक्षी पार्टियां भारी हैं। राज्यों में भाजपा नेताओं से ज्यादा मजबूत नेता कांग्रेस या दूसरी प्रादेशिक पार्टियों में हैं। उत्तर प्रदेश, असम जैसे एक दो राज्य छोड़ दिए जाएं तो हर राज्य में भाजपा के मुख्यमंत्री या प्रदेश के दूसरे नेताओं के मुकाबले ज्यादा बड़ा नेता विपक्ष का है। तभी केंद्र सरकार से लेकर भाजपा तक का पूरा प्रचार सिर्फ मोदी के चेहरे पर केंद्रित रहता है। लेकिन अब ऐसा लग रहा है कि पार्टी यह एडवांटेज गंवा रही है। जिस तरह विपक्षी पार्टियों के गठबंधन का मुकाबला करने के लिए भाजपा ने 38 पार्टियां जुटाईं और उसके लिए जिस तरह के समझौते किए जाने की खबरें आईं उससे यह मैसेज गया कि भाजपा कमजोर हुई है और मोदी को भी अपने करिश्मे पर भरोसा नहीं रह गया है। कुछ समय पहले ही संसद में नरेंद्र मोदी ने कहा था कि वे अकेले ही सब पर भारी हैं। भाजपा के नेता उनको शेर बता कर विपक्षी पार्टियों के गठबंधन का मजाक उड़ाते थे।
विपक्ष ने दावा किया कि पीएम मोदी विपक्ष की भीड़ से डर गए थे और इसलिए एनडीए की बैठक बुलाई गई, जिसमें 38 पार्टियां शामिल हुईं। उन्होंने 2024 के लोकसभा चुनावों में भारत को हराने के लिए एनडीए को चुनौती दी। इस बीच, भारत गठबंधन के विपक्षी नेताओं ने गठबंधन की टैगलाइन के रूप में ‘जीतेगा भारत’ को अंतिम रूप दिया, जिससे उनके 2024 के लोकसभा अभियान के लिए माहौल तैयार हो गया।
काबिलेगौर है कि बेंगलुरु में विपक्ष ने बड़े जोरशोर के साथ अपने नये गठबंधन को इंडिया नाम देते हुए टैगलाइन दी कि जीतेगा भारत। यही नहीं, नया नामकरण होते ही गठबंधन के नेताओं ने बड़े-बड़े दावे भी कर डाले लेकिन यह एकता एक ही क्षण में तब धराशायी हो गयी जब सभी विपक्षी नेताओं को एक मंच पर जुटाने के लिए मेहनत करने वाले बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ही नाराज हो गये। नीतीश कुमार, लालू प्रसाद यादव और तेजस्वी यादव जिस तरह बेंगलुरु की बैठक को बीच में छोड़कर पटना वापस चले गये उससे विपक्षी एकता के प्रयासों को बड़ा धक्का लगा है। जब-जब विपक्षी दलों की एकता की बात जितनी तीव्रता से हुई, तब-तब वह अधिक बिखरी। विपक्षी दलों की पटना की बैठक से लेकर बैंगलोर बैठक के बीच काफी कुछ बदल चुका है। विपक्षी एकता से पहले ही बिखराव एवं टूटन के स्वर ज्यादा उभरे हैं। भले ही पटना की बैठक में शामिल 16-17 दलों की संख्या बेंगलुरु में 26 हो रही है। लेकिन अभी हाल तक जो नेता विपक्षी एकता की पैरवी कर रहे थे या फिर भाजपा से दूरी बनाए थे, उनमें से कुछ पाला बदल चुके हैं। इनमें प्रमुख हैं जीतनराम मांझी और ओमप्रकाश राजभर। महाराष्ट्र में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी यानी राकांपा में विभाजन हो चुका है और विपक्षी एकता के सबसे बड़े पैरोकार नीतीश कुमार अपने दल में टूट की आशंका से ग्रस्त दिखने लगे हैं। आने वाले दिनों में ऐसे नेताओं की संख्या बढ़ सकती है, क्योंकि भाजपा भी अपने नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन को विस्तार देने के लिए प्रयासरत है। मूल प्रश्न है कि विपक्षी एकता मोदी हटाओ के अलावा क्या कोई सकारात्मक एजेंडा लेकर सामने आ रही है, ऐसा लगता नहीं। समूचे राष्ट्र की जनता विपक्षी एकता की राजनीति को गंभीरता से देख रही है, बिना बुनियादी मुद्दों की चर्चा के ऐसी विपक्षी एकता कोई निर्णायक एवं प्रभावी होगी, इसमें संदेह है।
2024 के लोकसभा चुनाव में नरेन्द्र मोदी की भाजपा को चुनौती देने के लिए एकता की कवायद में जुटे विपक्ष के समक्ष अब बिखराव से बचना बड़ी चुनौती बन गई है। सत्ता केंद्रित राजनीति में नेताओं की निष्ठा और विश्वसनीयता संभवतः सबसे निचले स्तर पर पहुंच चुकी है। इसलिए अब दलबदल चौंकाता नहीं, बार-बार दलबदल देखने को मिल रहे हैं। व्यक्ति एवं परिवार केन्द्रित राजनीति ने लोकतांत्रिक मूल्यों को धुंधलाया है। सोनिया गांधी के विदेशी मूल का मुद्दा उठाते हुए 1999 में शरद पवार द्वारा गठित राकांपा भी व्यक्ति और परिवार केंद्रित दल रही है। शरद पवार ने अपनी बेटी सुप्रिया सुले को राजनीतिक उत्तराधिकार के लिए पिछले कुछ साल से आगे बढ़ाना शुरू किया, पर उससे पहले भतीजे अजीत पवार को भी परिवारवाद की सोच से ही आगे किया। उन्हीं अजीत पवार ने सुप्रिया को आगे बढ़ता देख पार्टी में ही दोफाड़ कर भाजपा से हाथ मिला लिया और उप मुख्यमंत्री बन गए। ऐसे ही कभी बाल ठाकरे द्वारा बेटे उद्धव को राजनीतिक उत्तराधिकारी बनाए जाने पर भतीजे राज ठाकरे ने शिवसेना से बगावत की थी। इस तरह की स्थितियां विपक्षी एकता की बड़ी बाधा है।
हर कोई प्रधानमंत्री बनना चाहता है या अपने दल को बढ़ते हुए देखना चाहता है, यह मानसिकता भी विपक्षी एकता के बढ़ते रथ को रोक सकती है। महाराष्ट्र में हुए बिखराव से और बिहार में महागठबंधन में अलगाव से विपक्षी एकता की कवायद का आत्मविश्वास निश्चय ही गड़बड़ाएगा। भाजपा ने सवाल पूछना भी शुरू कर दिया है कि जो अपना दल नहीं संभाल पा रहे, वे विपक्षी एकता और देश क्या संभालेंगे? जब सत्तापक्ष और विपक्ष, दोनों ही अपने गठबंधनों को बढ़ाने एवं मजबूत करने में जुट गए हैं, तब 2024 की चुनावी जंग का नतीजा उस समय की राजनीतिक हवाओं एवं ताकत पर निर्भर करेगा कि उस समय किसके पक्ष में सकारात्मक हवाएं चल रही हैं।
नीतीश को क्यों है इंडिया नाम से एतराज ?
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने विपक्षी गठबंधन के नाम के रूप में इंडिया (भारतीय राष्ट्रीय विकासात्मक समावेशी गठबंधन) पर कड़ी आपत्ति जताई। कांग्रेस ने विपक्षी गठबंधन के नाम पर कोई चर्चा नहीं की और नाम सामने आने पर नीतीश कुमार हैरान रह गये। सभी विपक्षी दलों को एकजुट करने में नीतीश कुमार की भूमिका से इनकार नहीं किया जा सकता है। लेकिन जिस तरह से कांग्रेस ने गठबंधन को हाईजैक कर लिया है, उससे जदयू और राजद के नेता निश्चित रूप से सदमे में हैं।
26 विपक्षी दलों ने मिलकर UPA गठबंधन का नाम INDIA कर दिया। हर कोई इस नाम से सहमत रहा लेकिन शायद यह नाम बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार को रास नहीं आया। नीतिश खुलकर तो इसके विरोध में सामने नहीं आये हैं लेकिन जिस तरह की जानकारी मिली है उससे लगता है कि नीतिश कुमार इंडिया नाम से खुश नहीं हैं।
नीतीश कुमार के अलावा राष्ट्रीय जनता दल अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव व उनके बेटे और बिहार के उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव विपक्ष के संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में भी शामिल नहीं हुए थे। तीनों नेता एक ही उड़ान से लौटे और बिना पत्रकारों से बातचीत किए पटना हवाई अड्डे से अपने आवास रवाना हो गए।
भाजपा के वरिष्ठ नेता सुशील कुमार मोदी ने दावा किया है कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बेंगलुरु में विपक्ष की बैठक से जल्दी लौट आये क्योंकि वह नये गठबंधन का संयोजक नहीं बनाये जाने से नाराज थे। भाजपा नेता ने दावा किया कि नीतीश कुमार जानबूझकर ‘‘बैठक के बाद आयोजित संवाददाता सम्मेलन में शामिल नहीं हुए’’ क्योंकि वह ‘इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इन्क्लूसिव एलायंस’ (इंडिया) का ‘संयोजक’ नहीं बनाए जाने से अपमानित महसूस कर रहे थे। उन्होंने दावा किया कि बेंगलुरु में नीतीश विरोधी पोस्टर भी लगाये गए थे जबकि वहां कांग्रेस की सरकार है। सुशील कुमार मोदी ने कहा कि विपक्षी दलों की पटना में हुई बैठक में इसी तरह केजरीवाल नाराज होकर दिल्ली लौट गए थे। उन्होंने कहा, ‘‘जो लोग चुनाव से पहले मन नहीं मिला पा रहे हैं, न एक चेहरा तय कर पाए, वे देश के लोकप्रिय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को कोई चुनौती नहीं दे पाएंगे।’’
नीतीश की पार्टी जनता दल यूनाइटेड (जदयू) ने पलटवार करते हुए पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी को ऐसा व्यक्ति करार दिया जो ‘‘हास्यास्पद बयान देता है और जिसे उनकी पार्टी के भीतर भी गंभीरता से नहीं लिया जाता है।’’ जदयू के वरिष्ठ नेता और राज्य के मंत्री विजय कुमार चौधरी ने सुशील मोदी के बयान को खारिज करते हुए उनपर ‘‘बे सिर-पैर’’ का बयान देने का आरोप लगाया। चौधरी ने कहा, ‘‘सुशील मोदी को उनकी अपनी ही पार्टी में गंभीरता से नहीं लिया जाता है, जैसा कि उन्हें दरकिनार किए जाने से स्पष्ट है।’’