जातीय जनगणना
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इस शताब्दी से पहले परिस्थितियां कुछ ऐसी थीं कि बिहार के गांवों से लोग जिला मुख्यालय में बसने लगे। इस शताब्दी की शुरुआत में जिला मुख्यालय में भारी आबादी ऐसे ही लोगों की हो गई। जिला मुख्यालय की मूल आबादी से ज्यादा जिले के ग्रामीण इलाके के लोगों की हो गई वहां। जो आर्थिक रूप से सामर्थ्यवान होते गए, उनके घर पटना में हो गए। वोटर आईडी में ज्यादा सवाल-जवाब नहीं फंसा। आधार में अटका तो विकल्प मिल गया। 15 अप्रैल से शुरू हो रही जातीय जनगणना में क्या होगा? यह सवाल दो पते वाले लोगों को झकझोर रहा है। ‘अमर उजाला’ ने जातिगत जनगणना के मास्टर ट्रेनरों से इसका जवाब समझा।
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समस्या: दो पते वाले लोग भारी संख्या में हैं
बिहार में दो पते वाले लोग भारी तादाद में हैं। राजधानी पटना ही नहीं, भागलपुर, मुजफ्फरपुर, गया, बेगूसराय, पूर्णिया…करीब दो दर्जन शहर ऐसे हैं, जिनमें बड़ी आबादी ग्रामीण इलाकों से आ बसे लोगों की है। पटना में सिटी के इलाके को छोड़ दें तो एक तरफ दानापुर का लगभग हिस्सा पूरी तरह नए लोगों ने बसाया है। राजधानी के शुरुआती मुहल्ले कदमकुआं के सबसे पुराने बाशिंदे तो ज्यादातर दिल्ली या विदेश में बस गए हैं, बाकी सारे नए लोग हैं। पटना में पूरे राज्य के हर जिले के लोगों का एक पता बन गया है- अस्थायी या स्थायी। भागलपुर में विक्रमशिला सेतु बनने के पहले पुरानी आबादी ज्यादा थी, लेकिन पिछले 15 वर्षों में जिले के बाकी हिस्से के लोगों का जिला मुख्यालय पर आधिपत्य हो गया है। कमोबेश बाकी विकसित शहरों (जिला मुख्यालय) में भी यही हाल है। मतलब, गांव के पते के साथ एक शहरी पता बड़ी आबादी का हो गया है।
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वोटर कार्ड में डर नहीं, आधार में रास्ता मिला
दो जगह वोटर कार्ड बनाना मना है, लेकिन जब आधार से वोटर कार्ड का मिलान होगा तो सच सामने आ जाएगा कि उस नियम को लोगों ने नहीं माना। मतलब, गांव और शहर का अलग-अलग वोटर कार्ड रखने वाले लोग भारी तादाद में मिल जाएंगे। यूनिक आईडी, यानी आधार एक आदमी का दो बनना संभव नहीं है। इसलिए, जिसे जिस पते की ज्यादा जरूरत लगी, उसने आधार में वही पता रखा है। पता बदलने का विकल्प भी है इसमें।
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आधार वाले पते पर ही तो गणना कराना जरूरी नहीं
जातीय जनगणना में लोगों को यह सवाल परेशान कर रहा है कि कहीं आधार के पते पर ही गणना कराना जरूरी तो नहीं? या, दो जगह कराया जा सकता है? या, दो जगह कराने से परेशानी हो सकती है? या, कहां कराना ठीक होगा? तो, ऐसे ही सवालों के साथ जातीय जनगणना के मास्टर ट्रेनरों से पूछा गया कि वह इससे कैसे डील करेंगे। जवाब मिल- “जातीय जनगणना का सारा डाटा एक सर्वर पर फीड होगा। इसमें दो जगहों पर एक ही डाटा डालना संभव नहीं होगा। अपना, पिता का नाम, जाति का कोड आदि मैच करेगा तो दूसरी जगह डाटा फीड ही नहीं लेगा। स्वेच्छा से आधार नंबर डाला गया तो और आसानी से यह रोका जा सकेगा।”
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15 अप्रैल के पहले कर लेना होगा खुद ही फैसला
मास्टर ट्रेनरों के अनुसार, दो पते वाले लोगों को 15 अप्रैल के पहले तय कर लेना होगा कि उन्हें किस पते पर जातीय जनगणना में खुद को दर्ज कराना है। अगर आप खुद को ग्रामीण दिखाना चाहते हैं तो गांव वाले पते पर जनगणना के प्रगणकों के मूवमेंट की जानकारी रखिए। वह आने वाले हों तो गांव पर परिवार का कोई सदस्य जरूर रहे। या, अगर शहर में दर्ज कराना चाहते हों तो वहां के लिए ऐसी तैयारी रखिए।
जिस जगह पहले डाटा जाएगा, वही लॉक हो जाएगा
जातिगत जनगणना के सर्वर पर एक बार डाटा चला गया तो वह लॉक हो जाएगा। जैसे, मान लिया कि आपने शहर के पते पर सर्वे कर जानकारी दे दी है और बाद में लगा कि गांव वाले में ही रख लिया जाए तो यह संभव नहीं होगा। अगर जानकारी में उलटफेर कर ऐसा करने में कामयाब भी रहे तो फाइनल रिपोर्ट से पहले सॉफ्टवेयर छांटकर हटा देगा। इसलिए, बेहतर है कि तय रखें और एक ही जगह डाटा फीड कराएं, मतलब प्रगणक को जानकारी देकर हस्ताक्षर करें।
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बिहार से बाहर रहने लगे, मगर घर यहां है तो
जो लोग बिहार से बाहर चले गए हैं, लेकिन यहां घर है तो उनके लिए भी बिहार की जातीय जनगणना में शामिल होने के लिए दो चीजों की जानकारी पक्की करनी होगी। अगर जातीय जनगणना के पहले चरण में आपके मकान को चिह्नित कर नंबर दिया गया है तो उस जगह पर 15 अप्रैल से प्रगणकों के मूवमेंट की जानकारी रखनी होगी। प्रगणकों के आने पर परिवार का कोई सदस्य रिकॉर्ड देकर हस्ताक्षर करने के लिए उपलब्ध रहे। नहीं रहेगा तो मकान को खाली मान लिया जाएगा।
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